
एक बात पूंछू
तुम्हें
कभी याद आते हैं
वे पल
वे बीते पल
जिनमें कभी हमने
समय के सीने पर
कहानियां लिखी थीं
एक दूसरे की चाहत की
जब कभी कोयल कूकती है
अमराइयों में
क्या तुम भी याद करती हो
उन लम्हों को
उन गुज़रे लम्हों को
जब तुम्हारा चेहरा
मेरी हथेलियों में होता था
और
तुम भटकती जाती थीं
दूर
कहीं दूर
मुझे अपने करीब पाकर
नज़रों का झुक जाना
साँसों का बहकना
और
अपने थरथराते होठों की लरज़
तुम्हें याद आती है ?
क्या कभी चुभती है
तुम्हारे सीने में
उन टूटे सपनों की किरच
जिन्हें कभी
सजाया था
हमने
एक दूसरे की
खुली हथेलियों पर
अपने होठों की
तूलिका से
खामोश
ठहरे हुए पलों में
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