
सबब और भी हैं
शहर छोड़ने के
कि
इस शहर में
इस घर में
हर मोड़ पर
हर जगह
छुपी हैं यादें
तुम्हारी
जो
जीने नहीं देतीं
हमें
तन्हा कर देती हैं
भीड़ में भी
लेकिन
हम तुम्हें
पा भी नहीं सकते
क्योंकि जब
पहचान ही नहीं है
मेरी
तो किस अस्तित्व से जुडोगी
तुम
कि
अपनी पहचान लेकर
आऊँगा मैं
जब लौट कर
तब
शायद देर न हुई हो
और
मिल सको
तुम मुझे
जुड़ सको
मेरे उस अस्तित्व से
जो होगा
भीड़ से कुछ अलग
और
कह सको
तुम
उसे अपना
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