Friday, February 08, 2008

अभिमन्यु !!


एक अभिमन्यु
बन गया हूँ
जीवन के इस
चक्रव्यूह में
जहाँ
नाकामियां निराशा कुंठा और बेबसी
पहरेदार हैं
हर द्वार के
और हैं
मेरे शत्रु
जिनसे लड़ना है
मुझे
अकेले
और हारना नहीं है
क्योंकि
मैं जानता हूँ
कि
मेरी मौत के बाद
कोई अर्जुन नहीं आएगा
इनसे बदला लेने
मेरी हार का
इसलिए
मेरे सामने
कोई विकल्प नहीं है
सिर्फ जीतने के
मुझे लड़ना है
इनसे
अकेले
और
जीतना है
सिर्फ जीतना

काँच !!


काँच देखा है ना
नाज़ुक खूबसूरत काँच
टूट कर बदशक्ल लगता है ना
शायद तुम्हें लगता हो
मुझे नहीं
क्योंकि
वही सच होता है
काँच की नियति टूटना ही है
टूट कर बिखर जाना
यही थोड़ी सी ज़िन्दगी है
उसकी
पर तुम देखते भी नहीं
कोशिश भी नहीं करते
कि
टूट कर हर टुकड़ा
उतार लेता है अपने में
ज़िन्दगी का अक्स
उसका हर रंग
इन्द्रधनुषी सपनों से लेकर
खामोश तन्हा वीरानियों तक
और
इसीलिए काँच
महज काँच नहीं रह जाता वह
बन जाता है
ज़िन्दगी का पर्याय
टूट कर भी
इसीलिए मुझे
टूटा हुआ काँच
और भी ज्यादा
खूबसूरत लगता है

तिनका !!


एक तिनका
पड़ा है धारा में
बहता चला जा रहा है
बहाव के साथ
अनजाने सफ़र पर
जहाँ नज़र आती हैं
नाख्त्म राहें
पर
नज़र नहीं आती
कोई भी मंजिल
तिनके को चाहिए
कोई सहारा
जो नहीं मिलता
मिलता भी है
तो
सिर्फ दो क्षण के लिए
फिर वह भी
टूट जाता है
धारा में
और
बह जाता है
बहाव के साथ
तिनके का सफ़र
शायद ख़त्म होगा
उसके अस्तित्व के साथ
जो
समाप्त होगा
इसी धारा में
शायद यही
तिनके का परिचय है
और
यही उसकी
नियति

मेरा मन !!


अछोरों में बंधा आकाश
छोटा है
मेरे मन का आकाश
कभी देखा है

टूटा सपना !!


कैसा लगता है ?
जब टूटते हैं
सपने
कौन जानता है ?
नहीं
मैं जानता हूँ
क्योंकि
होता है एसा
अक्सर
मेरे साथ
जब टूटते हैं सपने
और
उन टूटे सपनों की किरच
चुभती हैं
मुझे
इस चुभन और दर्द का
अहसास
रहता है
हमेशा
मेरे साथ
इसीलिए
मैं जानता हूँ
कि
जब
टूटते हैं
सपने
तब
कैसा लगता है

कभी कभी !!


कभी कभी
लगता है
जैसे
ज़िन्दगी
इतनी सरल नहीं
जितनी
मैं समझता हूँ
पर
उतनी कठिन भी नहीं
जितनी
हम समझते हैं
केवल
ज़रुरत है
स्वप्नों के संसार से
निकल कर
यथार्थ के
कठोर धरातल पर
पाँव रखने की
इतनी मजबूती से
कि
सीड़ी दर सीड़ी
चढ़ कर
पहुँच सकें
सफलता की
उन ऊँचाइयों पर
जहाँ से
मुमकिन हो
छूना
आकाश को भी

ठहराव !!


एक ठहराव
आ गया है
मेरी ज़िन्दगी में
लगता है जैसे
हर राह बंद है
मेरे लिए
पर
मैं जानता हूँ
गलत है
मेरा सोचना
हर राह है
मेरे लिए
पर शायद
मैं ही
इन राहों पर
चलना नहीं चाहता
सिर्फ
मंज़िल पाना चाहता हूँ
जबकि
बिना किसी राह पर चले
नामुमकिन है
किसी मंज़िल को पाना
लेकिन
किसी राह पर चलने की
हिम्मत नहीं
कर पाया हूँ
अब तक
मैं
या शायद
कोई राह ही नहीं
चुन पाया हूँ
अब तक
मैं

मंज़िल !!


मंज़िल मेरी क्या ?
समझ नहीं पाया
राह मेरी क्या ?
सोच नहीं पाया
यूँ ही
बेमकसद बेमंज़िल
ज़िन्दगी की
नाख्त्म राहों में
चला जा रहा हूँ
हालात के हाथों
खुद को सौंप कर
ज़िन्दगी से अब तक
कुछ हासिल नहीं कर पाया
पता नहीं
कब समझ पाऊँगा ?
मेरी मंज़िल क्या
कब सोच पाऊँगा ?
मेरी राह क्या
कब जान पाऊँगा ?
वक़्त की कीमत को
जो गुज़र रहा है
वक़्त
वो पलट कर न आएगा
कुछ कर पाने का
ज़िन्दगी से
कुछ
हासिल कर पाने का
यही वक़्त है
जो खो रहा हूँ
मैं
कब समझ पाऊँगा ?

विकल्प !!


मेरा मन
हर फासला
तय करना चाहता है
पर
मेरा हर संकल्प
विकल्पों के जंगल में
खो जाता है
गलती मेरी ही थी
मैंने
फूल बनना चाहा
जबकि
काँटा बनने का
विकल्प
मौजूद था
सामने

कुछ है !!


कुछ है
जो
मेरी बाँहों में है
और
मुझसे दूर है
बस
एक स्पर्श है
सिहरन है
रोमांच है
नहीं
स्पर्श नहीं
सिहरन नहीं
रोमांच नहीं
सिर्फ
एक लापरवाह याद है
आर पार जाती हुई
मुझे
मुझसे अलगाती हुई

यादें !!


एक बात पूंछू
तुम्हें
कभी याद आते हैं
वे पल
वे बीते पल
जिनमें कभी हमने
समय के सीने पर
कहानियां लिखी थीं
एक दूसरे की चाहत की

जब कभी कोयल कूकती है
अमराइयों में
क्या तुम भी याद करती हो
उन लम्हों को
उन गुज़रे लम्हों को
जब तुम्हारा चेहरा
मेरी हथेलियों में होता था
और
तुम भटकती जाती थीं
दूर
कहीं दूर

मुझे अपने करीब पाकर
नज़रों का झुक जाना
साँसों का बहकना
और
अपने थरथराते होठों की लरज़
तुम्हें याद आती है ?

क्या कभी चुभती है
तुम्हारे सीने में
उन टूटे सपनों की किरच
जिन्हें कभी
सजाया था
हमने
एक दूसरे की
खुली हथेलियों पर
अपने होठों की
तूलिका से
खामोश
ठहरे हुए पलों में

इन्सान !!


अपनी ज़मीं से
बिछड़ कर जीना
जैसे
एक एक पत्ता
टूटता है
पेड़ का
अपनी शाख से
वैसे ही
पल पल
टूटता है
इंसान

आदत !!


अब हमें
कुछ नही व्यापता
टीसते हुए
जख्म का दर्द
बन चूका है
हमारी आदत
कहीं कुछ नही टूटता
कि
कुछ भी नहीं
बचा है
साबुत

क्यों !!


क्यों ?
इस कदर उदासी
आँखें हैं मेरी प्यासी
तुम पास आकर
प्रीतम
आज कुछ कहो न

तन्हाई की यह रातें
और
फिर तुम्हारी बातें
हँस कर जो की थीं तुमने
वो
आज फिर करो न

यूँ तो
हमें है छोड़ा
ज़माने में हर किसी ने
तुम
छोड़ कर ज़माना
मेरे साथ ही चलो न
आज कुछ कहो न

बीते पल !!


उन बीते पलों को
भूल जाएँ
कैसे भूल जाएँ
उन बीते पलों की
यादों को
जब
हम तुम
साथ होते थे
और
उन हसीं शामों के
रंगीं सुनहरे आँचल में
तुम हमसे
कुछ कहना चाहतीं
पर
कह न पातीं
वो
नज़रों का नज़रों से मिलना
फिर
मिल कर झुक जाना
एक अहसास है
वह बीता ज़माना
और
वह बीते पल
साथ गुजारे हुए
उन बीते पलों की
यादों को
कैसे भूल जाएँ
उन
बीते पलों को

तुम मेरे निकट आना !!


जब स्याह अँधेरे अहसास
उतरने लगें मेरे जिस्म में
तो बन कर किरन
तुम मुझसे लिपट जाना

जब आइना भी देखे मेरी जानिब
एक अजनबी की तरह
तो बन कर कोई अज़ीज
मेरी बाहों में सिमट आना

मैं बेमंज़िल मुसाफिर सा भटकता रहूँ
ज़िन्दगी की नाख्तम राहों में
तो सुन कर आह्ट मेरे क़दमों की
तुम अनजानी राहगुज़र से पलट आना

जब नाउम्मीदियों के समंदर में
डगमगाने लगे आशा की कश्ती
तो बन कर आस का साहिल
तुम मेरे निकट आना

ख़्वाब !!


एक खुश्बू सी
हवा में तैर जाती है
ज़िन्दगी जब
पास आकर बैठ जाती है

सरल होता है
सफ़र में साथ चलना
मगर मुश्किल है
किसी सम्बन्ध से जुड़ना
कोई अपनी सी छुअन
जब बाँध जाती है
उजालों की
एक दुनिया गुनगुनाती है

जानते हैं सभी
दर्दों से गुज़रना
उमर को ढोकर
अंधेरों में उतरना
एक पल भी
पलक
यदि आकाश पाती है
नज़र जैसे
चांदनी में नहा जाती है

मैं !!


मेरी कश्ती मेरा तूफां
मेरा दरिया मेरी मौज़
जहाँ भी चाहूँ
साहिल बना सकता हूँ
मैं
ये माना मैंने
एक धुंधला सा चिराग - ऐ - आस हूँ
हाँ
मगर फिर भी
सहर होने तक
झिलमिला सकता हूँ
मैं

पहचान !!


खोता जा रहा हूँ
पहचान अपनी
मैं
अपने ही शहर में
कि
अजनबी बन गया हूँ
मैं
अपने ही घर में
इसलिए
छोड़ रहा हूँ
मैं
ये शहर
जा रहा हूँ
ज़िन्दगी से
कुछ हासिल करने
इस उम्मीद में
कि शायद
मिल सके
ज़िन्दगी
किसी मोड़ पर
कि मिल सके
मेरी पहचान
जब लोग जानेंगे
मुझे
मेरे नाम से
जब
नहीं रहूँगा
मैं
भीड़ में एक अजनबी
उसका एक हिस्सा
तब आऊँगा
मैं
लौट कर
इस शहर में
अपने घर में

अस्तित्व !!


सबब और भी हैं
शहर छोड़ने के
कि
इस शहर में
इस घर में
हर मोड़ पर
हर जगह
छुपी हैं यादें
तुम्हारी
जो
जीने नहीं देतीं
हमें
तन्हा कर देती हैं
भीड़ में भी
लेकिन
हम तुम्हें
पा भी नहीं सकते
क्योंकि जब
पहचान ही नहीं है
मेरी
तो किस अस्तित्व से जुडोगी
तुम
कि
अपनी पहचान लेकर
आऊँगा मैं
जब लौट कर
तब
शायद देर न हुई हो
और
मिल सको
तुम मुझे
जुड़ सको
मेरे उस अस्तित्व से
जो होगा
भीड़ से कुछ अलग
और
कह सको
तुम
उसे अपना

अहसास !!


तुम
एक अहसास हो
मेरे आस पास
हर पल
तुमको पाया
तो
ज़िन्दगी मिली
हर ख़ुशी मिली
जैसे
मेरे सपनों में
रंग उतर आया
तुम्हारे प्यार का
एक विश्वास
है मेरे साथ
तुम दोगी
साथ मेरा
भविष्य की
अनजानी राहों पर
जीवन के
उस छोर तक

तुम !!


तुम
एक गीत हो
प्यार का
तुम
एक कली हो
मुस्कुराती हुई
तुम
खुशबू हो
फूलों की
तुम
चाँदनी हो
चाँद की
तुम
आस हो
ज़िन्दगी की
तुम
एक अहसास हो
प्यार का
और
प्यार भी तो हो
हमारा
तुम

शब्द !!


एक शब्द
तुम्हारे नाम का
एक याद है
जो हमारे दिल में
अमिट है
इस नाम की
याद को
भुला पाना
कैसे मुमकिन है
इस शब्द से निकलते
कितने शब्द
जिनमें एक है
प्यार
इतना मीठा
इतना सलोना
तुम्हारे नाम जैसा
एक शब्द

रश्मि !!


अंधेरों में
कुछ इस तरह
घिर गया हूँ
मैं
कि
उजालों को
तरस गया हूँ
मैं
मायूसियों और नाकामियों के
इस अन्धकार में
सिर्फ है एक
रश्मि
जो
प्रशस्त कर रही
मेरा पथ
शायद
पहुँच सकूँ
इस उजाले में
उसके सहारे
किसी मंज़िल तक
नामुमकिन को
मुमकिन करके
शायद

आस !!


ज़िन्दगी के
हर मोड़ पर
है सिर्फ
अन्धकार
इन अंधेरों से
क्या निकल सकूंगा ?
क्या पा सकूंगा
उजालों की दुनिया में
उस
रश्मि को
जो आस है
ज़िन्दगी की
जानता हूँ
यह मुमकिन नही
पर
एक आस है
या शायद
कहीं विश्वास है
मन में
जो टूटा नही है
अभी

कविता !!


कभी
तन्हाइयों में
जब
मायूसियों के साए
गहराते हैं
उदासी के इस
आलम में
जब कोई
यादों में चला आता है
और
ख्यालों में आकर
दिल के तारों को
छेड़ जाता है
इसी संगीत से निकलते हैं
जो शब्द
वही
कविता बन जाते हैं

तुम्हारा नाम !!


तुम्हारा नाम
एक कविता है
जिसे हम
गुनगुनाते रहते हैं
बस वही तो है
जो हमारा प्यार है
हमारी मंज़िल है
जिसे पाना है
ज़माने से टकरा कर
तुम्हारा नाम
एक अफसाना है
हमारी ज़िन्दगी का
जिसे लिखा है
तुमने
हमारे दिल पर
तुम्हारा नाम
हमारी ज़िन्दगी है
जिसे चाहा है
हमने
जो अब
एक दर्द बन गया है
हमारे दिल का
तुम्हारा नाम