एक अभिमन्यु
बन गया हूँ
जीवन के इस
चक्रव्यूह में
जहाँ
नाकामियां निराशा कुंठा और बेबसी
पहरेदार हैं
हर द्वार के
और हैं
मेरे शत्रु
जिनसे लड़ना है
मुझे
अकेले
और हारना नहीं है
क्योंकि
मैं जानता हूँ
कि
मेरी मौत के बाद
कोई अर्जुन नहीं आएगा
इनसे बदला लेने
मेरी हार का
इसलिए
मेरे सामने
कोई विकल्प नहीं है
सिर्फ जीतने के
मुझे लड़ना है
इनसे
अकेले
और
जीतना है
सिर्फ जीतना