Friday, February 08, 2008

मैं !!


मेरी कश्ती मेरा तूफां
मेरा दरिया मेरी मौज़
जहाँ भी चाहूँ
साहिल बना सकता हूँ
मैं
ये माना मैंने
एक धुंधला सा चिराग - ऐ - आस हूँ
हाँ
मगर फिर भी
सहर होने तक
झिलमिला सकता हूँ
मैं

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