Friday, February 08, 2008

काँच !!


काँच देखा है ना
नाज़ुक खूबसूरत काँच
टूट कर बदशक्ल लगता है ना
शायद तुम्हें लगता हो
मुझे नहीं
क्योंकि
वही सच होता है
काँच की नियति टूटना ही है
टूट कर बिखर जाना
यही थोड़ी सी ज़िन्दगी है
उसकी
पर तुम देखते भी नहीं
कोशिश भी नहीं करते
कि
टूट कर हर टुकड़ा
उतार लेता है अपने में
ज़िन्दगी का अक्स
उसका हर रंग
इन्द्रधनुषी सपनों से लेकर
खामोश तन्हा वीरानियों तक
और
इसीलिए काँच
महज काँच नहीं रह जाता वह
बन जाता है
ज़िन्दगी का पर्याय
टूट कर भी
इसीलिए मुझे
टूटा हुआ काँच
और भी ज्यादा
खूबसूरत लगता है

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